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ग्रीनहाउस कृषि पर यह पुस्तक संरक्षित खेती की बुनियादी जानकारी व ज्ञान के वास्तविक प्रयोग की संभवतः पहली पुस्तक है। योजना से लेकर संरचना तक, 15 ग्रीनहाउस सब्जियों और फूलों की फसलों में मिट्टी-जल-पोषक तत्व प्रबंधन, नर्सरी उत्पादन, ग्राफ्टिंग, परागण, पौध संरक्षण और स्मार्ट शहरी, छत, वर्टीकल फार्मिंग और मिट्टी रहित खेती सहित हाई-टेक बागवानी के उद्यमी पहलुओं तक का प्रशंसा योग्य जानकारी इसमें व्याप्त है। यह छात्रों, शिक्षकों, नीति निर्माताओं, किसानों, उद्यमियों, कृषि/बागवानी अधिकारियों, ग्रामीण श्रमिकों, कृषि विज्ञान केंद्रों, स्कूल शिक्षकों आदि के लिए अत्यधिक उपयोगी है। पुस्तक अत्यंत उपयोगी व व्यावहार उन्मुख पाठ्य व किसान मित्र ज्ञान का स्रोत है जो विषय को बहुत ही सरल और व्यापक भाषा में बताती है। यह सभी हितधारकों के लिए अवश्य पढ़ने योग्य है।
अनुलग्नक (ऐनेक्स्चर)
डा. नवेद साबिर प्रधान वैज्ञानिकसंरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी केंद्र (CPCT)भा.कृ.अ.प.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थानव पी.एच.डी.आई.ए.आर.आई.नई दिल्ली से प्राप्त की। नई दिल्ली में कार्यरत हैं। उनका जन्म अलीगढ़ जिले की तहसील सिकंद्रा राउ में 1964 में हुआ। उन्होने एम.एस.सी. व एम.फिल. की डिग्री अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से इसके बाद उन्होने फूड सेफ्टी व ग्लोबल गैप पर भी ट्रेनिंग सर्टिफिकेट किये। 1989 में ए.आर.एस. परीक्षा करके लखनऊ से अपना कार्य आरंभ किया। वह अपने कैरियर के आरंभ से ही हार्टिकल्चर फसलों में आई.पी.एम.सूत्रकृमि प्रबंधन व गैप आदि विषयों पर कार्य करते रहे। डा. साबिर 1997 से 2016 तक राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन केंद्र (NCIPM) नई दिल्ली में कार्यरत रहे जहां उन्होनें हार्टिकल्चर की विभिन्न फसलों व संरक्षित खेती में आई.पी.एम. व गैप जैसे विषयों पर कार्य किया। संरक्षित कृषि से संबंधित कार्य में आई.पी.एम. के महत्व के चलते वह बाद में सी.पी.सी.टी.आई.ए.आर.आई.नई दिल्ली में नियुक्त हुऐ व संरक्षित खेती कार्य से जुड़े रहे। डा. साबिर ने देश व विदेश में 40 से अधिक शोध पेपर व 25 से अधिक तकनीकी बुलेटिन प्रकाशित किये हैं। इसके अतिरिक्त संरक्षित खेती के स्कूल स्तर पर वोकशनल कोर्स की NCERT की दो पुस्तकें व आई.पी.एम. एवं सूत्रकृमि प्रबंधन पर कई और पुस्तकें व बुलेटिन लिख चुके हैं। डा. साबिर विभिन्न वैज्ञानिक समितियोंके सदस्य व आयोजक रह चुके हैं। वह इंडियन सोसायटी फार प्रोटैक्टेड कल्टीवेशन ISPC की स्थापना में मुख्य भूमिका निभा चुके हैं एव राष्ट्रीय स्तर के अनेक कार्यक्रमों के संयोजक व सह-संयोजक भी रह चुके हैं। डा. साबिर GLOBALGAP विषय पर फिलिपाइंस डवलपमेंट ऐजेंसी में आयोजित वर्कशाप में कंट्री रिप्रेज़ैन्टेटिव भी रह चुके हैं। डा. साबिर ने देश भर के संस्थानों व कृषि से संबंधित आयोजनों के माध्यम से सैंकड़ों कार्यक्रमों में ज्ञान-विज्ञान की जानकारी देने के लिये काफी लोकप्रिय हैं। डा. साबिर को देश के स्तर पर कई सम्मान प्रतीक व एवार्ड भी दिये जा चुके हैं। संरक्षित खेती में पौध संरक्षण विशेषज्ञ के रूप में वह देश के अग्रणी वैज्ञानिकों में से एक हैं। अधिकारिक व निजी स्तर पर लगभग 6देशों की यात्रा पर भी रह चुके हैं। डा. साबिर संरक्षित खेती व आई.पी.एम. विशेषज्ञ के रूप में देश की विभिन्न समितियों में DST-TIFAC GoI, NIPHM, BIS, GOI राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB)गुरूग्राम आदि अनेक में सदस्य के रूप में योगदान दे चुके हैं। संरक्षित कृषि विषय पर यह उल्लेखनीय पुस्तक उनके इस विषय से अगाथ प्रेम, निष्ठा व कठिन परिश्रम का सूचक है जिसमें उनके सहकर्मियों डा. मुर्तज़ा हसन व डा. अवनि कुमार सिंह का भरपूर ज्ञानअनुभव व सहयोग स्पष्ट प्रतीत होता है। उनको ई-मेल nsabir29@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
डा. अवनि कुमार सिंह का जन्म 1972 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ। उन्होने अपनी बी.एसएसी. (कृषि) की शिक्षा टी.डी. काॅलेज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश से तथा एम.एससी. (कृषि) एवं पी.एच.डी. (बागवानी) की शिक्षा आर.बी.एस. कालेज, आगरा विश्वविद्यालय, आगरा, उत्तर प्रदेश से हासिल की। वर्तमान में डा. सिंह देश के प्रतिष्ठित पूसा संस्थान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-IARI), नई दिल्ली के संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी केन्द्र (CPCT) में बतौर प्रधान वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं। इन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर कार्यभार ग्रहण करने से पूर्व कृषि विज्ञान केन्द्र, लोहाघाट, चम्पावत (गोविन्द वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (GBPUAT), पंतनगर, उत्तराखण्ड़) में विभिन्न पदों पर कुशलतापूर्वक कार्य किया है। पिछले 24 वर्षों में इन्होंने मैदानी एवं पर्वतीय क्षेत्रों में संरक्षित कृषि एवं हाईटेक बागवानी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। डा. सिंह द्वारा विविध सब्ज़ी फसलों की आठ उच्च उपजशील किस्में विकसित की गईं हैं और साथ ही बड़ी संख्या में किसानों के साथ कार्य करते हुए ग्रीनहाउस, पालीहाउस, टनल, पलवार बिछाना, जल संचयन, ड्रिप-उर्वरीकरण, मृदारहित एवं हाइड्रोपानिक्स, वर्टिकल/जैविक/नेटहाउस/एकीकृत खेती, आफ-सीजन उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकियों का प्रसार एवं प्रदर्शन भी किया गया है। इनके द्वारा अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में कुल 57 से भी अधिक अनुसंधान पेपर एवं लेख, अनेक पुस्तक अध्याय, सारांश, तीन पुस्तक, पांच बुलेटिन, अनेक प्रसार फोल्डर, प्रशिक्षण एवं शिक्षण मैनुअल्स तथा संरक्षित प्रौद्योगिकियों के बारे में 500 से भी अधिक समाचार कवरेज का प्रकाशन किया है। डा. अवनि सिंह ने 25 से भी अधिक अनुसंधान परियोजनाओं का संचालन किया है। साथ ही इन्होंने सब्जी विज्ञान, हाईटेक एवं संरक्षित खेती के क्षेत्र में 15 एम.एस.सी./पी.एच.डी. छात्रों का मार्गदर्शन किया है व अनेक छात्रों के परामर्शक भी रहे हैं। संस्थान के PG Schoolमें अनेक पाठ्यक्रमों में अग्रणी भूमिका निभाते रहे है। उन्हें उल्लेखनीय कार्य के लिए अनेक वैज्ञानिक संगठनों द्वारा पुरस्कृत किया गया है। डा. सिंह ने पाठ्यक्रम निदेशक के तौर पर ICAR/NAHEPके अंतर्गत चार अल्पावधि प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया है। डा. सिंह द्वारा डीडी-1, डीडी-किसान, एफएम-गोल्ड व मेरा गांव - मेरा गौरव कार्यक्रम में कुल 35 टीवी वार्ताएं एवं 13 रेडियो वार्ताएं प्रस्तुत की गईं हैं। डा. सिंह, नौ प्रोफेशनल सोसायटीज के आजीवन सदस्य और CHAI नोनी, RASSA एवं प्रोगे्रसिव हार्टिकल्चर के फेलो भी हैं। उनके ई-मेल singhawani5@gmail.com पर इनसे सम्पर्क किया जा सकता है।
डा. मुर्तज़ा हसन वर्तमान में पूसा संस्थान नामतः भाकृअनुप - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-IARI), कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, पूसा, नई दिल्ली के संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी केन्द्र (CPCT) में बतौर प्रधान वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं। इनका जन्म सन् 1971 में मुजफ्फरपुर, बिहार में हुआ। इन्होंने अपनी पीएच.डी. ( कृषि अभियांत्रिकी) की शिक्षा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली से हासिल की। डा. हसन को अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं में छः वर्षीय अनुभव के साथ-साथ अनुसंधान, शिक्षण एवं प्रशिक्षण में कुल 21 वर्षों का अनुभव है। इनके अनुसंधान क्षेत्रों में शामिल है: जल संसाधन प्रबंध, संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी, वर्टिकल एवं स्मार्ट कृषि एवं दबावग्रस्त ड्रिप उर्वरीकरण। इन्होंने ETIFA NOVADADES AGRICOLAS स्पेन से डिप्लोमा हासिल किया है और साथ ही इस्रायल एवं स्पेन में पीडीएफ कार्यों के लिए MASHAV इस्रायल एवं विश्व बैंक से अंतर्राष्ट्रीय फेलोशिप प्राप्त की है। डा. हसन, ISAE, ISWM तथा ISPC के आजीवन सदस्य हैं। साथ ही ये कृषि अभियांत्रिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में संकाय सदस्य हैं और इन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में 12 एम.टेक. एवं 3 पी.एच.डी. छात्रों का मार्गदर्शन किया है। इनके द्वारा संरक्षित खेती प्रौद्योगिकी एवं जल संसाधन प्रबंध से संबंधित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST), विश्व बैंक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वित्त पोषित कुल 15 अंतराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय परियोजनाओं का संचालन किया गया है। इनके द्वारा 100 से भी अनुसंधान पेपर, तकनीकी लेख, रिपोर्ट, सेमिनार के कार्यवृत एवं बुलेटिन आदि का प्रकाशन कराया गया है। डा. हसन ने ग्रीनहाउस में खेती, ड्रिप उर्वरीकरण एवं जल संसाधन प्रबंध से जुड़े प्रसार एवं प्रौद्योगिकीय सहयोग के लिए दूरदर्शन, डीडी किसान चैनल पर 50 सीधे (LIVE) एवं रिकार्डिड कार्यक्रम प्रस्तुत किए हैं। अभी हाल ही में डा. हसन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग - TIFAC भारत सरकार; राष्ट्रीय जल मिशन, जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार; बीआईएस, भारत सरकार; एवं राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB), कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार में एक तकनीकी विषेशज्ञ एवं सदस्य के रूप में सक्रिय रहे हैं। उनके ई-मेल hasaniari40@gmail.comपर इनसे सम्पर्क किया जा सकता है।